मणिपुर: बीते 565 दिनों से सुलग और जल रहा है। अब हिंसा और विद्रोह थम नहीं पा रहे हैं। गुस्सा और आक्रोश इस पराकाष्ठा तक पहुंच चुके हैं कि पहली बार मंत्रियों और विधायकों के आवास बड़े स्तर पर निशाने पर हैं। रविवार को एक भाजपा विधायक का घर फूंक दिया गया। भाजपा-कांग्रेस के दफ्तरों में तोड़-फोड़ की जा रही है। तीन मंत्रियों सहित 9 विधायकों के घरों पर हमले किए जा चुके हैं। बीते शनिवार को गुस्साई भीड़ ने एनपीपी विधायक रामेश्वर सिंह को घर से निकाल कर खूब पीटा। त्वरित प्रतिक्रिया में एनपीपी ने बीरेन सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया। पार्टी के 7 विधायक हैं। समर्थन वापसी का पत्र भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को भी भेज दिया गया है। तीन निर्दलीय विधायकों ने भी सरकार से समर्थन खींच लिया है। कुकी समुदाय के 7 विधायक मई, 2023 से ही राज्य की भाजपा सरकार से अलग हैं। कुल 17 विधायकों के समर्थन वापस लेने के बावजूद मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की सरकार अल्पमत में नहीं है, क्योंकि 60 के सदन में सरकार को कुल 52 विधायकों का समर्थन हासिल था। बुनियादी मुद्दा बहुमत या अल्पमत का नहीं है। अलबत्ता मणिपुर के हालात ने सरकार के भीतर ही विद्रोह सुलगा दिया है। बताया जाता है कि स्पीकर सहित 14 भाजपा और 5 अन्य विधायकों ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिख कर मुख्यमंत्री बदलने की मांग की है। यदि प्रधानमंत्री ने यथासमय निर्णय नहीं लिया, तो सदन में ‘विश्वास मत’ की नौबत आ सकती है। यदि भाजपा के विद्रोही विधायक अपनी मांग पर अड़े रहे, तो सरकार अल्पमत में आ सकती है। बहरहाल सवाल यह है कि क्या मोदी सरकार मणिपुर को शांत, स्थिर करने की पक्षधर नहीं है अथवा वह विस्फोटक हालात को नियंत्रित करने में अक्षम, नाकाम है? ताजा घटनाक्रम जलने लगा, तो गृहमंत्री अमित शाह ने शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों के संग बैठकें कीं। कुछ विद्रोही विधायकों से फोन पर बातचीत भी की गई। अंततरू सीआरपीएफ के महानिदेशक अनीश दयाल सिंह को मणिपुर भेजा गया है।
सेना और असम राइफल्स के हजारों जवान तैनात हैं और हालात से जूझ रहे हैं। मणिपुर में ‘अफस्पा’ लागू है, हालांकि मणिपुर अखंडता की समन्वय समिति इसे हटाने का बार-बार आग्रह कर रही है। हालात ऐसे हैं कि महिलाओं और बच्चों की भी हत्याएं की गई हैं, क्योंकि उनके शव मिले हैं। उसके बाद ही ताजा तनाव फैला है और हिंसा बढ़ी है। इंफाल घाटी में कर्फ्यू लगा है। इंटरनेट और मोबाइल डाटा सेवाएं फिलहाल निलंबित हैं। मुद्दा मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय तनाव का है। यह कैसा मसला है, जिसे भारत सरकार सुलझा नहीं पा रही है? संसद के भीतर और बाहर लगातार सवाल किए जाते रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी एक बार भी मणिपुर क्यों नहीं गए? क्या वह भारत गणराज्य का हिस्सा नहीं है? डबल इंजन की सरकार है, लेकिन न तो मणिपुर ‘एक’ है और न ही वहां की जनता ‘सेफ’ है! मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के खिलाफ मुद्दत से असंतोष और विद्रोह देखा जा रहा है, फिर भी उन्हें बरकरार रखने का मोह क्या है? वैसे यह राजनीतिक मसला भी नहीं है। दोनों समुदाय ‘जनजातीय दर्जा’ हासिल करने को संघर्ष कर रहे हैं। क्या प्रधानमंत्री यह समस्या भी सुलझा नहीं सकते? ये हालात मणिपुर में उग्रवाद की नई लहर पैदा कर सकते हैं। मोदी सरकार आतंकवाद या उग्रवाद अथवा नक्सलवाद को कुचलने के दावे करती रही है, लेकिन मुख्यमंत्री बीरेन सिंह का आवास भी घेरा जाए या हमले की नौबत आ जाए और सुरक्षा बढ़ानी पड़े, तो क्या उन्हें सामान्य हालात कहेंगे? मैतेई समुदाय का आरोप है कि उग्रवादियों ने अपहरण कर उसके लोगों की हत्या की है, जिनके शव मिलने के बाद हालात उग्र हुए थे। बहरहाल मणिपुर में विधायकों के घरों पर हमला करने वाले लोगों को गिरफ्तार किया गया है, दूसरी ओर कुकी समुदाय जिद पर अड़ा है कि जब तक मुठभेड़ में मारे गए उसके युवकों की पोस्टमॉर्टम रपट नहीं मिलेगी, तब तक उनका अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा। कुल मिला कर मणिपुर में हालात अराजक हैं, हिंसा और हत्याओं का दौर है, क्या लोकतंत्र में ऐसा ही होता है? क्या प्रधानमंत्री के स्तर पर एक जनजातीय दर्जे का मसला हल नहीं किया जा सकता?